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ILIATION
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।सामाजिकता मनुष्य को परस्परसंगठित होने के लिए प्रेरित करती है। मैत्री भावना सामाजिकता को नया आयाम देती है। किन्तु वैर भावना सामाजिकता की विधातक है। यह व्यक्ति-व्यक्ति में दूरी को बढ़ाती है और समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करती है। इस चिन्तन के आलोक में वैदिक व जैन- दोनों धर्मों में कल्याणकारी उद्बोधन दिए गए हैं।
(1)
मित्ती मे सव्वभूएसु।
(आवश्यक सूत्र- वंदित्तु, 50)
- प्राणी मात्र से मेरी मैत्री हो।
(2) मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।
(यजुर्वेद-36/18)
– हम सबको मित्र की दृष्टि से देखें।
(3)
मेत्तिं भूएसु कप्पए।
(उत्तराध्ययन सूत्र-6/2)
- सब जीवों पर मित्र भाव रखें।
तीय सण्ड/415