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________________ आत्मा ही है। (3) किंभया पाणा ? दुक्खभया पाणा । - प्राणियों को किसका भय है ? दुःख का । (4) अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य। - दुःख (स्थानांग सूत्र- 3 ) (उत्तराध्ययन सूत्र - 20/37) और सुख का करने वाला और न करने वाला स्वयं (5) आत्मना विहितं दुःखमात्मना विहितं सुखम् । ( महाभारत- 12/181/14) - दुःख और सुख आत्मा का ही किया हुआ है। (6) का अरई के आणंदे । ( आचारांग सूत्र - 1/4/3) - ज्ञानी के लिए अरति क्या है और आनन्द क्या है ? (अर्थात् ज्ञानी विषाद या आनन्द के क्षणों में एक जैसा रहता है | ) (7) सुखं वा यदि वा दुःखं, स योगी परमो मतः । (गीता - 6/32) - सुख हो या दुःख, दोनों को जो समान समझता है, वह परमउत्कृष्ट योगी माना गया है। 000 जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सास्कृतिक एकता 414 सुख-दुःख के विषय में वैदिक व जैन- दोनों धर्मों में पर्याप्त चिन्तन हुआ है। उसमें निहित विचार - साम्य को उपर्युक्त उद्धरणों में स्पष्ट पढा जा सकता है।
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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