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(धार्मिक जीवन श्रेयस्कर)
(7) एकोहुधम्मो नरदेव ताणं, ण विज्जइ अण्णमिहेह किंचि।
___(उत्तराध्ययन सूत्र- 14/40) - एक धर्म को छोड़कर और कोई ऐसा नहीं है जो जीवन में हितकर-रक्षक होता है।
(8) स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।
(गीता- 2/40) - जीवन में धर्म का थोड़ा-सा भी पालन व्यक्ति की महाभय से रक्षा करता है।
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प्रत्येक प्राणी में विद्यमान जिजीविषा (जीने की चाह), जीवन की अनित्यता एवं जीवन में मात्र धर्मानुष्ठान की श्रेयस्करता- इन तीनों को वैदिक व जैन- दोनों धर्मों ने अपने उदबोधन-उपदेशों में रेखांकित किया है।
जौनपदिक धर्म की साम1ि11 404