________________
(3) नह्यात्मनः प्रियतरंकिञ्चिद्भूतेषु निश्चितम्। अनिष्टं सर्वभूतानां मरणं नाम भारत ॥
(महाभारत- 11/7/27) - अपनी आत्मा, अपने जीवन से अधिक प्यारी वस्तु प्राणियों की नहीं होती।सभी प्राणियों के लिए सबसे अधिक अनिष्टकारी कोई वस्तु है, तो वह है- मृत्यु।
(4)
अमेध्यमध्ये कीटस्य, सुरेन्द्रस्य सुरालये। सदृशी जीवने वाञ्छा, तुल्यं मृत्यु-भयं द्वयोः॥
(गीता रहस्य) - इन्द्र में और अमेध्य-विष्ठा-गत कीडे में, दोनों में जीवन की आकांक्षा और मृत्यु का भय समान है। (जीवन की अनित्यता)
__(5)
जीवियं चेव रूवंच, विजुसंपायचंचलं।
__(उत्तराध्ययन सूत्र- 18/73) - यह जीवन और सौन्दर्य बिजली की चमक की तरह चंचल (अनित्य) है।
(6)
नायमत्यन्तसंयोगो लभ्यते जातु केनचित्। अपि स्वेन शरीरेण किमुतान्येन केनचित्॥
(महाभारत- 12/28/52) - किसी को भी ऐसा कोई संयोग प्राप्त नहीं है जो नित्य हो और किसी संयोग की बात तो दूर, यह जो शरीर का संयोग हमें प्राप्त हुआ है, वह भी नित्य नहीं होता।
तृतीय खण्ड/403 .