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________________ RRO80000000000STA प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है। जिन वस्तुओं से उसे सुख मिलता है, वे उसे प्रिय लगती हैं। जिनसे दुःख मिलता है, वे उसे अप्रिय लगती हैं। इस संसार में अनेक वस्तुएं लोगों को प्रिय लगती हैं तो अनेक अप्रिय भी, किन्तु उन सब में जो सबसे अधिक प्रिय वस्तु है, वह है- जीवन। सभी प्राणी जीवन चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। किन्तु यह जीवन अनित्य होता है। इस विनश्वर जीवन में धर्माचरण किया जाय तो भावी जीवन सुखमय हो सकता है। सभी धार्मिक परम्पराओं में इस सत्य को एक स्वर में अभिव्यक्त किया गया है। (1) सव्वेसिं जीवियं पियं। (आचारांग सूत्र- 1/2/3) - सब को अपना जीवन प्रिय होता है। (2) - सर्वोजीवितुमिच्छति। (योगवाशिष्ठ) - सभी प्राणी जीवित रहना चाहते हैं। जैन धर्म i dदिक धर्म की Rip fi: Third 402 >> >
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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