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(7) ब्राह्मणस्य तु देहोऽयं क्षुद्रकामाय नेष्यते । कृच्छ्राय तपसे चेह प्रेत्यानन्तसुखाय च ॥
(भागवत पुराण- 11/17/42) - मनुष्य - योनि में श्रेष्ठतम 'ब्राह्मण' का यह जो देह मिला है,
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वह विषय-भोग जैसे तुच्छ काम में गंवाने के लिए नहीं है, अपितु तपस्या कर और मरने के बाद अनन्तसुख (मोक्ष) की प्राप्ति हेतु पुरुषार्थ करने के लिए प्राप्त हुआ है।
मनुष्य जन्म की श्रेष्ठता व दुर्लभता को वैदिक व जैन- दोनों धर्मों में मुक्तकंठ से स्वीकारा है। संयमी जीवन जीकर, मोक्ष-हेतु पुरुषार्थ किया जाए, तभी इस मनुष्य-जन्म की श्रेष्ठता सार्थक होगी- इस विचारधारा का दोनों धर्म समर्थन करते हैं ।
तृतीय खण्ड/401