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________________ - (ऋषि वेद व्यास कहते है) मैं तुम्हें एक रहस्य की बात बताता हूं- मनुष्य-जन्म से अधिक कोई श्रेष्ठ जन्म नहीं है। (3) विदत् स्वर्मनवे ज्योतिरार्यम्। (ऋग्वेद 10/43/4) - मनुष्य को सुखद व श्रेष्ठ ज्ञान-ज्योति प्राप्त हुई है। पुव्वकम्मखयहाए इमं देहंसमुद्धरे। ___ (उत्तराध्ययन सूत्र-6/14) - पूर्वसंचित कर्मों के क्षय (मोक्ष पाने) के लिए इस मनुष्य-देह को धारण करे, इस देह का उपयोग करे। (5) धम्मच कुणमाणस्स सफला जंति राइओ। (उत्तराध्ययन सूत्र- 14/25) - धर्माचरण करने वाले व्यक्ति की ही रात्रियां (रात-दिन) सफल होती हैं। (6) एतावान् सांख्ययोगाभ्यां, स्वधर्मपरिनिष्ठया। जन्मलाभः परः पुंसामन्ते नारायण-स्मृतिः॥ (भागवतपुराण- 2/1/6) - मनुष्य-जन्म का यही इतना लाभ है कि चाहे जैसे हो, ज्ञान से, भक्ति से या धर्म-निष्ठा से, जीवन को ऐसा बना लिया जाय कि मृत्यु के समय 'परमेश्वर' स्मृति में रहे। जनम दि धर्म की सारीक बता/4004
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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