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________________ 446089900000000000000000000000086660 मनुष्य जन्म संसार में अनेकानेक प्राणी हैं। उन्हें 84 लाख योनियों में वर्गीकृत किया जाता है। इन्द्रियों के आधार पर एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक 5 भेद हैं। गति के आधार पर पर मनुष्य, देव, नरक, व तिर्यञ्च- ये 4 भेद हैं। इन सब प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ कौन है- यह जिज्ञासा स्वाभाविक है। सभी धर्मों व दर्शनों में एक स्वर से मनुष्य-जन्म को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया है। इसकी श्रेष्ठता का कारण यह है कि चिन्तन-मनन कर, आत्मिक उन्नति के सर्वोच्च सोपान पर चढने के लिए उचित पुरुषार्थ करने का सुअवसर इसी मनुष्य-जन्म में मिल सकता है। इसी सुअवसर को क्रियान्वित करना मनुष्य-जन्म की सार्थकता है। (1) माणुस्सं खु सुदुल्लहं। (उत्तराध्ययन सूत्र- 20/11) - मनुष्य-जन्म अति दुर्लभ है। (2) गुह्यं ब्रह्म तदिदं वो ब्रवीमि। नमानुषाच्छ्रेष्ठतरं हि किञ्चित्॥ (महाभारत- 12/299/20) ततीय खण्ड/399
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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