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- धर्माचरण में धन की क्या उपयोगिता है ? (अर्थात् कुछ
नहीं)।
(8) अमृतत्वस्य नाशाऽस्ति वित्तेन।
(बृहदारण्यक उपनिषद्-2/4/3) -धन से अमृतत्व (मोक्ष) की प्राप्ति हो- ऐसी आशा नहीं की
जा सकती।
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तृष्णा व असन्तोष के साथ अधिकाधिक धन-सम्पत्ति का अर्जन दुःखदायी होता है। किन्तु सन्तोष व अनासक्ति से उसे सुखदायी बनाया जा सकता है। यह विचारधारा उपर्युक्त शास्त्रीय उद्धरणों में अभिव्यक्त हुई है, साथ ही जैन व वैदिक- इन दोनों धर्मों की एकस्वरता भी मुखरित हुई है।
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कि धर्म की सास्कृतिक प्रदाता/3981