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CARRONARAYAN
धन-सम्पत्ति
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पद
सामान्यतः धन-सम्पत्ति को लोग सुख का साधन समझते हैं। किन्तु जब बुद्धि से अज्ञान का आवरण हटता है तो यह विवेक जागृत होता है कि भौतिक सुख-सम्पत्ति सुख कम, किन्तु दुःख अधिक देती है। धन बटोरने और उसे सुरक्षित रखने में होने वाली व्याकुलता व्यक्ति को कभी सुखी नहीं होने देती, अपितु सदैव तनाव, भय व आशंका से ग्रस्त रखती है।
___असन्तोष, तृष्णा व लोभ के रहते हुए व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता। इसके विपरीत, सन्तोषी व अनासक्त व्यक्ति थोड़े में ही सुखी रहता है। धर्माचरण व साधना के क्षेत्र में धन की कोई उपयोगिता है ही नहीं, क्योंकि वहां मन की पवित्रता व आत्मीय शुद्धि की ही प्रधानता होती है। उपर्युक्त विचारधारा का समर्थन वैदिक व जैन- इन दोनों धर्मों में हुआ है।
(1)
असंतुट्ठाणं इह परत्थ व भयंति।
(आचारांग-चूर्णि- 1/2/2) - सन्तोष-रहित व्यक्ति को यहां-वहां, सर्वत्र भय बना रहता है।
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(2) सन्तोषमूलं हि सुखं, दुःखमूलं विपर्ययः।
(मनुस्मृति-4/12)
जैन धर्म मोदिक धर्म की सतत 11 3962