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(रात्रि-भोजन)
(3) अत्थंगयम्मि आइच्चे, पुरत्थाय अणुग्गए। आहारमाइयं सव्वं, मणसा वि न पत्थए।
(दशवैकालिक सूत्र-8/28) - सूर्य अस्त होने से सूर्य उदय होने तक, मुमुक्षु सर्व प्रकार की खान-पान की मन से भी इच्छा न करे।
(4) वर्जनीया महाराजन् ! निशीथे भोजनक्रिया।
(महाभारत) - राजन् ! रात में भोजन करना सर्वथा छोड़ देना चाहिए।
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भोजन को बांट कर खाना और रात्रिभोजन का त्याग करना- इन दो विचारबिन्दुओं पर दोनों धर्मों की समान विचारधारा का निदर्शन उपर्युक्त उद्धरणों के माध्यम से हुआ है। उक्त वैचारिक समानता पठनीय व मननीय है।
जय रखण्ड/395