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________________ M ov000000000000dopoop S TARRANORFORMACORKARI ISRO BLUE RAJS4065800035800300388 :Paaudindi N ___ मोह-जनित ममत्व से परिग्रह-वृत्ति का संवर्धन होता है। ममत्वभाव के कारण आसक्ति, तृष्णा बढ़ती जाती है और लोभ का वर्चस्व बढता है। यह लोभ समस्त अनर्थों का कारण बनता है। तृष्णा कभी शान्त नहीं होती और व्याकुलता बनी ही रहती है। इस प्रकार परिग्रह दुःखदायक ही सिद्ध होता है। अतः 'अपरिग्रह की साधना श्रेयस्कर है जिसमें तृष्णा, आसक्ति लोभ का दमन कर सन्तोष, अनासक्ति व वैराग्य का संवर्धन करना होता है। इस विषय में जैन व वैदिक- दोनों धर्मों के चिन्तन की दिशा समान ही है। (1) नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो। __(प्रश्नव्याकरण सूत्र-1/5) - परिग्रह (आसक्ति) के जैसा दूसरा कोई बन्धन नहीं है। (2) जीवाः कामबन्धनबन्धनाः। (महाभारत- 12/279/19) - जीव कामनाओं के बन्धन में बंधे हुए हैं। 4जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता/390
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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