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________________ DOORDARS 4888888888 8 अचोया Mer Tube8888skan.k..See 800000000000000000899 munाम दी गई वस्तु को छोड़कर, किसी की वस्तु को लेना, उस पर अधिकार जताना 'चोरी' है। यह एक निन्दनीय कार्य है। चोरी करने वाले का जीवन अनेक संकटों की आशंका से ग्रस्त रहता है। चोर सदैव तनाव-ग्रस्त व भयभीत रहता है। सुरक्षित स्थान की तलाश में वह भटकता रहता है और पापमय जीवन जीने के लिए विवश रहता है। __ आवश्यकता से आधिक सम्पत्ति आदि का संचय करना भी 'चोरी' है और एक सामाजिक अपराध है। अनावश्यक संचय करने वाला समाज के अन्य लोगों को उस संचित वस्तु के उपयोग से वंचित करता है जो न्यायोचित नहीं। उपर्युक्त विचारधारा को जैन व वैदिक- दोनों ही परम्पराएं एकमत से स्वीकारती हैं। (1) दंतसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं। (उत्तराध्ययन सूत्र-12/28) - दांत खुरचने के लायक (तुच्छ से तुच्छ) वस्तु को भी, बिना दूसरे के द्वारा दिये हुए, न ले। . तृतीय खण्ड/387
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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