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________________ (3) तमेव सच्चं णिस्संकं, जं जिणेहिं पवेइयं। (आचारांग सूत्र-1/5/5) - वही सत्य है, वही सन्देह रहित है, जो जिनों, राग-द्वेष विजेताओं, सर्वज्ञों द्वारा प्ररूपित हुआ है। (4) सच्चस्स आणाए उवहिए मेहावीमारंतड़। (आचारांग सूत्र-1/3/3/19) - सत्य की आज्ञा-सीमा में स्थित विद्वान् मृत्यु को जीत लेता है। __ (5) सत्यस्य नावः सुकृतमपीपरन्। (ऋग्वेद-9/73/1) - सत्य की नौका धर्मात्मा को पार लगाती है। (6) सत्यवादी हि लोकेऽस्मिन् परंगच्छति चाक्षयम्। (वाल्मीकिरामायण- 2/109/11) - सत्यवादी इस लोक में अक्षय परम पद (मोक्ष) पाता है। (7) अन्नं भासइ अन्नं करेइ त्ति मुसावाओ। (निशीथचूर्णि- 3988) - कहना कुछ और करना कुछ, यही मृषावाद है। न धर्म पदि धर्म की सारगतिका पता 3846
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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