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(8) दुःखी सदा को विषयानुरागी।
(शंकर प्रश्नोत्तरी-13) - दु:खी कौन है ? जो विषय-भोगों में अनुरक्त है।
(9) सल्लंकामा विसंकामा कामा आसीविसोपमा।
__ (उत्तराध्ययन सूत्र-9/53) - कामभोग कांटे हैं, विषतुल्य हैं। यही नहीं, वे आशीविष सर्प के समान (भयंकर) हैं।
__ (10) विषाद् विषं किं, विषयाः समस्ताः।
__ (शंकर-प्रश्नोत्तरी-13) - सबसे से बड़ा (अधिक भयंकर) विष क्या है? समस्त विषय-भोग ही विष हैं।
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सुख पाना और दुःख से छूटना सभी चाहते हैं। दुःखों का कारण है- विषयभोगों में आसक्ति। विषय-भोगों से विरत होने के लिए इन्द्रिय-विजय व ब्रह्मचर्य की साधना ही उपयोगी है। ब्रह्मचर्य की श्रेष्ठता को तथा विषय भोगों की निस्सारता को दोनों धर्मों (जैन व वैदिक) ने एकमत से स्वीकार किया है।
जैन में
दिक धर्म की सास्कृतिक
ता/382