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(8) न हणे पाणिणो पाणे।
(उत्तराध्ययन सूत्र-6/7)
- किसी प्राणी का प्राणघात न करो।
(9) मा हिंस्यात् सर्वभूतानि।
(यजुर्वेद-13/47)
- किसी भी जीव की हिंसा न करें।
(10) दाणाण सेनेंअभयप्पयाणं।
(सूत्रकृतांग सूत्र-1/6/23)
- दानों में अभयदान सर्वश्रेष्ठ है।
(11) सर्वे वेदाश्च यज्ञाश्च, तपो दानानि चानघ। जीवाभयप्रदानस्य, नकुरिन् कलामपि॥
(भागवतपुराण-3/7141) - सब वेद, यज्ञ, तप और दान (सभी प्राणियों के प्रति किये जाने वाले) अभय-प्रदान के एक अंश जितने भी नहीं हैं।
उपर्युक्त शास्त्रीय उद्धरणों से यह तथ्य स्वतः मुखरित हुआ है कि अहिंसा-दर्शन की मौलिक मान्यताओं में वैदिक व जैन- ये दोनों धर्म पूर्णतया एकमत हैं।
_ तृतीय रखण्ड/379