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________________ (2) नैषा तर्केण मतिरापनेया। (कठोपनिषद्-2/9) - यह आत्म-ज्ञान तर्क से प्राप्त नहीं होता। (3) इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः। मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥ (गीता-3/42) - इन्द्रियां शरीर से परे हैं, मन इन्द्रियों से परे है, बुद्धि मन से परे है और बुद्धि से भी परे यह आत्मा है। (4) नो इन्द्रियगेड़ा अमुत्तभावा। (उत्तराध्ययन सूत्र-14/19) - आत्मा अमूर्त-निराकार है, अत: वह इन्द्रियों से गृहीत नहीं होता। (5) न चात्मा शक्यते द्रष्टमिन्द्रियैः। __(महाभारत-12/288/18) - आत्मा का इन्द्रियों द्वारा दर्शन नहीं किया जा सकता। (6) अप्पा मित्तममित्तं च । __ (उत्तराध्ययन सूत्र-20/37) - आत्मा ही अपना मित्र और आत्मा ही अपना अमित्र-शत्रु है। तीय खण्ड/371
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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