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________________ (सरलता), (4)मार्दव (मृदुलता, कोमलता ), ( 5 )लाघव (नम्रता), (6) सत्य (7) संयम (8) तप, (9) त्याग, और (10) ब्रह्मचर्य - ये धर्म के 10 लक्षण हैं। (2) धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म-लक्षणम् ॥ (मनुस्मृति-7/92) - (1) धैर्य, (2) क्षमा, (3) दम, (मानसिक संयम), (4) अस्तेय (अन्याय से किसी वस्तु का न लेना), (5) शौच (पवित्रता), (6) इन्द्रिय निग्रह (विषयों में प्रवृत्त होने से इन्द्रियों को रोकना), (7) धी (शास्त्रादि का तात्त्विक ज्ञान), (8) विद्या (आत्मबोधी ज्ञान), (9) सत्य ( यथार्थ कथन ), और (10) अक्रोध (क्रोध नहीं करना) - ये धर्म के 10 लक्षण हैं। (2) धम्मं चर । (उत्तराध्ययन सूत्र, 18/3) - धर्म का अनुसरण करो । (3) धर्मं चर । (तैत्तिरीय उपनिषद् - 1/11/1 ) - धर्म का पालन करो। (4) इक्को हु धम्मो नरदेव ताणं, ण विज्जइ अण्णमिहेह किंचि । जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता / 368 (उत्तराध्ययन सूत्र- 14/40)
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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