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________________ 0000000000000 888 finit संसार में हजारों धर्म-सम्प्रदाय हैं। उनके मानने वाले तो लाखों -करोड़ों में हैं। धर्म की परिभाषाएं सब की भिन्न-भिन्न हैं। यह सब होने पर भी, धर्म की परिभाषा क्या है, किसे धर्म कहें- यह अनिर्णीत है। जैन व वैदिक- इन दो धर्मों की धर्म-सम्बन्धी व्याख्या निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत है। जैन धर्म के स्थानांग सूत्र में 10 बातों को धर्म के रूप में निरूपित किया गया है-क्षमा, मुक्ति आदि। साथ में इस धर्म पर चलने की प्रेरणा भी है और धर्म को जीव का परम रक्षक भी बताया गया है। वैदिक धर्म के ऋषि मनु भी दस बातों को 'धर्म' कहते हैं। उक्त समानता के साथ-साथ धर्माचरण-सम्बन्धी प्रेरणादायक वचनों में भी समानता है। अन्त में 'जो धर्म की रक्षा करता है, वही रक्षित है'- इस तथ्य का प्रतिपादन भी दोनों धर्मों में समान विचारधारा पर किया गया है। (1) खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे, सच्चे। संजमे, तवे, चिआए, बंभचेरवासे ॥ (स्थानांग सूत्र-10) - (1) क्षमा, (2) मुक्ति (अनासक्ति), (3) ऋजुता jीय खण्ड,367
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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