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मर्यादा के प्रतीक स्वरूप श्रीराम ने रावण के पास संधिप्रस्ताव भेजा और सीता को लौटाने की बात कही। अपने को विश्वविजेता समझने वाले रावण ने श्रीराम का प्रस्ताव ठुकरा दिया। इस पर रावण का भाई विभीषण उसे छोड़कर श्रीराम के चरणों में आ गया।
राम और रावण के मध्य भीषण संग्राम हुआ। इस युद्ध में अधर्म का प्रतीक रावण अपने भाइयों, पुत्रों और अजेय सेना सहित मारा गया। धर्म और मर्यादा के प्रकाशपुञ्ज श्रीराम की विजय हुई। तब तक श्रीराम का चौदह वर्ष का वनवास-काल भी पूर्ण हो चुका था। श्रीराम सीता, लक्ष्मण, हनुमान और सुग्रीव सहित अयोध्या लौट गए।
श्रीराम का अयोध्या-आगमन कार्तिक मास की अमावस के दिन हुआ। सम्पूर्ण अयोध्या नगरी को दुल्हन की भांति सजाया गया था। द्वार-द्वार और दीवार-दीवार पर दीप-मालाएं प्रज्ज्वलित की गई थीं। व्यक्तिव्यक्ति के हृदय में श्रीराम के स्वागत का उल्लास था। यह स्वागतोत्सव इतना भव्य था कि जन-जन के लिए यह दिन अविस्मरणीय बन गया। और युग पर युग अतीत हो गए, आज तक कार्तिक अमावस का वह दिन भारत का जनमानस विस्मृत न कर सका है। आज भी प्रतिवर्ष इस दिन अपूर्व हर्षोत्सव मनाया जाता है।
कार्तिक अमावस के साथ श्रीराम की यादें जुड़ी हैं। यह दिन सम्पूर्ण विश्व को अधर्म पर धर्म की और अन्धेरे पर प्रकाश की विजय का संदेश और उपदेश देता है। विशेषकर भारतीय जनमानस के लिए यह दिन विशेष श्रद्धा और समर्पण का है। वह श्रीराम को उनके आदर्शों के कारण अपने हृदय-मंदिर में प्रतिष्ठित करके उनकी अर्चना-वन्दना करता है।
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इन कथाओं में सबसे प्रमुख श्रीराम की कथा है। इस दिन रावण जैसे प्रबल पराक्रमी और अत्याचारी राजा रावण को पराजित करके श्रीराम अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने अपने प्रिय और पूज्य श्रीराम का स्वागत दीपमालाएं प्रज्ज्वलित करके किया था। दीपमालाओं के प्रज्ज्वलन के कारण उस दिन का नाम दीपावली विख्यात हुआ।
द्वितीय रखण्ड 365