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________________ दूसरा प्रमुख कथानक है महाश्रमण महावीर का | विकट साधना से अपनी आत्मा में परमात्मा को अवतरित करके तथा संसार को सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह तथा अनेकान्त का महाप्रकाश बांट कर इसी दिन श्रमण महावीर ने मोक्ष के लिए महाप्रयाण किया था । इन्द्र के निर्देश पर देवों और मनुष्यों ने मिलकर उस रात में दीपमालाएं प्रज्ज्वलित करके श्रमण महावीर के सम्मान में अपनी श्रद्धा- अर्घ्य अर्पित की थी । भगवान् महावीर का अर्हन्त अवस्था प्राप्त करना, समस्त जगत् को अहिंसा धर्म का पावन मंगलमय उपदेश देकर सन्मार्ग दिखाना, और इसी लोककल्याणकारी कार्य को करते हुए सिद्ध-बुद्ध-मुक्त (निर्वाण ) अवस्था को प्राप्त करना - यह सब भगवान् महावीर की वैयक्तिक उपलब्धि नहीं है, अपितु समस्त मानव जाति की परम उपलब्धि है । यह घटना युगान्तरकारी होने से उत्सव नहीं, महोत्सव बन कर आज भी प्रवर्तमान है । इसी प्रकार राम का अयोध्या में लौटना सम्पूर्ण अयोध्या का उत्सव बन गया । महापुरुषों का होना ही उत्सव होता है । वे जहां होते हैं, वहीं सब की खुशियां बन कर जगमगाते हैं। वहां से चले जाने पर भी प्रकाश की स्मृति और प्रेरणा बन कर आलोक विकीर्ण करते हैं। ऊपर प्रस्तुत दोनों कथानकों से प्रकाश-पुंज दीपावली की महत्ता तो सिद्ध होती ही है, यह भी संकेत मिलता है कि यह पर्व भोगविलास का साधन नहीं, अध्यात्मिक उच्चता प्राप्त करने का प्रेरणा-स्रोत है। दीपावली दीपों के प्रकाश का पर्व है। यह मानवीय असीम उदारता को प्रतिबिम्बित करता है। प्रकाश का स्वभाव है- संकीर्णता को छोड़कर महल हो या झोपड़ी, सर्वत्र अन्धकार दूर करना | समता रूपी धर्म का प्रतीक है दीपक । अतः दीपावली एक महान् धार्मिक उत्सव है। जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता 366
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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