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& B5प्रकाश-प्रज्ञ दीपावली
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(सांस्कृतिक पृष्ठभूमिः)
जब कोई समारोह सर्वसाधारण (या अधिकांश जनता) के कल्याण से सम्बन्धित होता है, तो वह उत्सव या महोत्सव की कोटी में आ जाता है। चूंकि महापुरुषों के जन्म में जन-कल्याण के कार्यों का बीज छिपा रहता है, अतः उसे भी महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
उत्सव सदैव सामूहिक होता है। वह समूह की आशाओं और उपलब्धियों का प्रतिबिम्ब होता है। व्यक्ति तक सीमित उपलब्धियां, चाहे जितनी अधिक व सशक्त हों, कभी उदात्त नहीं हो सकतीं और सूर्य-प्रकाशसा महत्त्व नहीं पा सकतीं। उनका महत्त्व एक मकान तक सीमित विद्युतप्रकाश जैसा होता है। उपलब्धियां जब व्यापक समाज को प्रकाशित करने लगती हैं तो वे व्यक्तिगत नहीं रह जातीं। संकीर्णता से मुक्त हो जाती हैं। मानव सभ्यता एवं संस्कृति का निर्माण ऐसी ही उपलब्धियों से हुआ है।
यों तो प्रत्येक दिन नवीन और मंगलमय होता है, लेकिन कोई-कोई दिन इतिहास के पटल पर तथा मानव के मानस पर अपनी अमिट और अक्षुण्ण छाप छोड़ जाता है। कार्तिक अमावस का दिन वैसा ही एक दिन है। इस दिन का भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास में गौरवशाली और विशिष्ट स्थान है । अत्यन्त प्राचीन काल से भारतवासी इस दिन को महान् उत्सव और महापर्व का दर्जा देकर हर्षोल्लास से मनाते आए हैं।
जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता/360D>