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________________ वैदिक व जैन परम्परा से जुड़े कुछ कथानक यहां प्रस्तुत हैं । -दर्शन को हृदयंगम करने वाले अनासक्त महापुरुषों के जीवन जिनमें मृत्यु-द चरित निबद्ध हैं । [१] नमि राजर्षि (जैन) अवन्ती देश में सुदर्शन नाम का नगर था । वहां मणिरथ नाम का राजा राज्य करता था। युगबाहु इसका भाई था । उसकी पत्नी का नाम मदनरेखा था | मणिरथ ने युगबाहु को मार डाला । मदनरेखा गर्भवती थी । वह वहां से अकेली चल पड़ी। जंगल में उसने एक पुत्र को जन्म दिया । उसे रत्नकम्बल में लपेट कर वहीं रख दिया और स्वयं शौच कर्म करने जलाशय में गई। वहां एक जलहस्ती ने उसे सूंड़ से उठाकर सुरक्षित स्थान पर रख दिया । विदेह राष्ट्र के अन्तर्गत मिथिला नगरी का नरेश पद्मरथ शिकार करने जंगल में आया । उसने उस बच्चे को उठाया । वह निष्पुत्र था । पुत्र की सहज प्राप्ति पर उसे प्रसन्नता हुई । बालक उसके घर में बढ़ने लगा। उसके प्रभाव से पद्मरथ के शत्रु राजा भी नत हो गए। इसलिए बालक का नाम 'नमि' रखा । युवा होने पर उसका विवाह 1008 कन्याओं के साथ सम्पन्न हुआ । पद्मरथ विदेह राष्ट्र की राज्यसत्ता नमि को सौंप प्रव्रजित हो गया। एक बार महाराज नमि को दाह ज्वर हुआ । उसने छह मास तक अत्यन्त वेदना सही । वैद्यों ने रोग को असाध्य बतलाया । दाह-ज्वर को शान्त करने के लिए रानियां स्वयं चन्दन घिस रही थीं । उनके हाथ में पहिने हुए कंकण बज रहे थे । उनकी आवाज से राजा को कष्ट होने लगा । उसने कंकण उतार देने के लिए कहा। सभी रानियों ने सौभाग्य चिह्न स्वरूप एकएक कंकण को छोड़ कर शेष सभी कंकण उतार दिए। कुछ देर बाद राजा ने अपने मंत्री से पूछा - 'कंकण के शब्द क्यों नहीं सुनाई दे रहा है?" मंत्री ने कहा- राजन्! उनके घर्षण से उठे हुए शब्द आपको अप्रिय लगते हैं, यह सोचकर सभी रानियों ने एक-एक कंकण के अतिरिक्त शेष कंकण उतार दिए हैं। अकेले में घर्षण नहीं होता । घर्षण के बिना शब्द कहां से उठे ? द्वितीय खण्ड 353
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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