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मृत्यु का सत्य Mas
(सांस्कृतिक पृष्ठभूमिः)
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मृत्यु जीवन का अन्तिम और सबसे बड़ा सत्य है । जो जन्म लेता है वह एक दिन अवश्य मरता है। प्रायः सभी भारतीय आस्तिक विचारधाराओं में मृत्यु के उक्त सत्य को स्वीकार किया गया है। वैदिक परम्परा में महाभारतकार महर्षि व्यास का कथन है- मृत्युनाभ्याहतो लोको जरया परिवारितः ( महाभा. 12/277/9 ) । अर्थात् वृद्धावस्था इस समस्त लोक को घेरती है और मृत्यु विनष्ट करती रहती है । सुत्तं व्याघ्रो मृगमिव मृत्युरादाय गच्छति ( महाभा. 12 / 175/18 ) । अर्थात् जैसे कोई व्याघ्र सोये हुए मृग को उठाकर ले जाता है, उसी प्रकार मृत्यु भी प्राणी को (अचानक) उठाकर ले जाती है । महाभारत में ही अन्यत्र कहा गया है:संचिन्वानकमेवैनं कामानामवितृप्तकम् । वृकीवोरणमासाद्य मृत्युरादाय गच्छति ॥
( महाभा. 12/277/18-19) - नित्य संचय (परिग्रह) में लगे हुए और कामनाओं की तृप्ति न कर पाते हुए प्राणी को मृत्यु उसी प्रकार पकड़ कर ले जाती है जैसे व्याघ्री भेड़ के बच्चे को ले जाती है।
वेद तथा उपनिषद् के ऋषियों की वाणी में भी यही स्वर उद्घोषित हुआ है- मृत्युबन्धवः... मनवः स्मसि (ऋग्वेद- 3/2/10)। अर्थात् हम सभी मनुष्य मृत्यु के बन्धन में हैं । यदिदं सर्वं मृत्योरन्नम्
द्वितीय खण्ड/349