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________________ भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु दिव्य चमत्कार दोनों में समान है। सम्पूर्ण भूमण्डल को दो ही कदमों में नाप देने का विश्रुत कथानक जैन और वैदिक दोनों परम्पराओं के पौराणिक ग्रन्थों में सूक्ष्म अन्तर के साथ उपलब्ध होता है। जैन परम्परा के महामुनि विष्णुकुमार श्रमणसंघ की रक्षा के लिए अपने तप के बल से सम्पूर्ण भूमण्डल को दो ही कदमों में नाप कर नमुचि के धर्मद्वेषी-अत्याचारी शासन का अन्त कर देते हैं। वैदिक परम्परा के विश्रुत कथानक में स्वयं भगवान् विष्णु देवताओं की रक्षा के लिए वामनावतार ग्रहण करते हैं और दैत्येश्वर बलि से तीन कदम भूभाग की याचना करते हैं। दैत्येश्वर बलि की स्वीकृति पर भगवान् वामन अपना रूप विशाल बनाकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को दो ही कदमों में नाप देते हैं। भूमण्डलपरिमापन की यह मान्यता दोनों परम्पराओं में पर्याप्त साम्यभाव से प्राप्त होती है। जैन मान्यतानुसार मुनि विष्णुकुमार द्वारा श्रमण संघ की रक्षा का वह दिन रक्षाबन्धन के त्यौहार के रूप में आज तक प्रचलित है। दो संस्कृतियों की समवेत स्वराअलियां व भावाअलियां इन कथानकों में अन्तर्निहित हैं। एक बात यहां उल्लेखनीय है। वैदिक परम्परा में परमात्मा परमदयालु होता है तो जैन मुनि पूर्णतः अहिंसक। किन्तु यहां दोनों का उग्र रूप प्रकट हुआ है। इसका कारण यह है कि अन्याय को रोकने के लिए ही उन्होंने अपनी शक्ति का प्रयोग किया है। अन्याय को रोकना कभी कभी (अपवाद रूप में) परम आवश्यक हो जाता है। अन्यथा समग्र नैतिक मर्यादाओं के लुप्त होने का खतरा रहता है। अन्याय को रोकने में दोनों विचारधाराओं/परम्पराओं की स्वीकृति को इन कथानकों ने व्याख्यायित किया है। जैन धर्म वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता/348
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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