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________________ बलि हंसे। बोले- “मात्र तीन कदम भूमि! आपकी आशा अवश्य पूर्ण होगी। आपको भूमि मिलेगी ।" शुक्राचार्य ने बलि को चेताया । वे समझ चुके थे कि वामनरूप में स्वयं विष्णु उनके समक्ष हैं और वे तीन कदम में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को नाप ने की क्षमता रखते हैं। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी और बोले - " मैंने जो वचन दिया है उसे मैं प्राण देकर भी पूरा करूंगा ।" बलि के उत्तर से रूष्ट होकर शुक्राचार्य ने उन्हें शाप दिया - "दैत्येश्वर ! तूने मेरी आज्ञा की अवज्ञा की है । अतः तेरा यह ऐश्वर्य शीघ्र नष्ट हो जाएगा ।" बलि के भूमिदान का संकल्प लेने पर वामन रूपी भगवान् विष्णु ने अपना रूप विशाल बनाया । उन्होंने दो कदमों में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को नाप डाला । तृतीय कदम उठाकर विष्णु बोले - " दैत्यराज ! तुझे अपने राज्य और शक्ति का बड़ा अभिमान था । मैंने तुम्हारे सम्पूर्ण राज्य को दो कदमों में ही नाप डाला है । बोल! यह तृतीय कदम कहां रखूं ?" बलि बोले - “प्रभु ! सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है । आपने दो कदम में मेरा पूरा साम्राज्य ले लिया है। तृतीय कदम के लिए मैं स्वयं को अर्पित करता हूं । मेरा शरीर ग्रहण कीजिए भगवन् ।” दैत्येश्वर बलि के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए भगवान् विष्णु ने अपना तृतीय कदम उनकी देह पर रख दिया । बलि की देह नष्ट हो गई । महान् दान देकर बलि सदा-सर्वदा के लिए अमर हो गए। भगवान् विष्णु बलि की भक्ति से अतीव प्रसन्न हुए । उन्होंने बलि को निजधाम प्रदान करते हुए कहा "वत्स! तुम इन्द्र बनना चाहते थे। मैं स्वयं तुम्हें अगले सावर्णी मन्वन्तर में इन्द्र पद पर बैठाऊंगा ।" दैत्यकुल में उत्पन्न दैत्यराज बलि की अमर कीर्ति त्रिलोकों और त्रिकालों में अमर हो गई। [द्रष्टव्यः भागवत पुराण- 8/18-23 अध्याय ] उपर्युक्त दोनों कथानकों में जो समानता है, वह सहज अनुभूतिगम्य हो रही है। पात्र और स्थिति जरूर द्वितीय खण्ड: 347
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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