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[२] मथुरा-नरेश : कंस
विदित) विधि का विधान विचित्र होता है। अनेक बार हिरण्यकशिपु जैसे अधर्मी और पापात्माओं को प्रह्लाद जैसे भगवद्भक्त पुत्र प्राप्त होते हैं और अनेक बार उग्रसेन जैसे धर्मप्राण पुरुषों को कंस जैसे दुष्ट और उद्दण्ड पुत्रों की प्राप्ति होती है।
मथुरा के राजा उग्रसेन धर्मात्मा, प्रजावत्सल और न्यायशील शासक थे। उनके पुत्र का नाम कंस था। कंस का जीवन अपने पिता के विरोधी गुणों- दुर्गुणों से आपूरित था। वह क्रूर और अन्यायी था। यौवन और प्रभुसत्ता के संयोग ने उसे उद्दण्ड और उच्छृखल बना दिया था।
कंस की बहन देवकी का विवाह वसुदेव से निश्चित हुआ। विवाह के समय कंस की पत्नी और प्रतिवासुदेव जरासन्ध की पुत्री जीवयशा ने मदिरा के नशे में चूर होकर नियम और मर्यादाओं का उल्लंघन किया। उस समय आकाशवाणी हुई- देवकी की आठवीं संतान के रूप में कंस का काल (विनाशक) जन्म लेगा।
आकाशवाणी ने कंस के होश उड़ा दिए। उसने देवकी और वसुदेव को कालकोठरी में डाल दिया। पुत्र के इस कृत्य पर पिता उग्रसेन को बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने कंस की भर्त्सना की, प्रताड़ना दी। उन्होंने कंस का विरोध किया।
अहंकार और लोभ के नशे में मत्त कंस ने अपने पिता महाराज उग्रसेन को बन्दी बनाकर कारागृह में डाल दिया और स्वयं राजगद्दी पर बैठ गया। इससे कंस का भारी अपयश हआ, लेकिन भयवश किसी ने मुखर विरोध करने का साहस नहीं किया।
भवितव्यता को टाला नहीं जा सकता । कंस ने भी सहस्रशः उपाय किए अपनी मृत्यु को टालने के, लेकिन वह असफल रहा। माता देवकी की आठवीं संतान- श्रीकृष्ण गोकुल में पले और बढ़े। फिर एक दिन उन्होंने कंस जैसे अत्याचारी अधर्मी शासक को समाप्त करके धर्मात्माओं की रक्षा की। उन्होंने अपने माता-पिता को बन्दीगृह से मुक्त कराया तथा
जैन धर्म
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