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________________ - लोभ में असीम पाप भरा हुआ है। इन नीच लोभ ने किसको वश में नहीं किया है? उससे आविष्ट हो जाने पर श्रेष्ठ राजा भी कौन-सा बुरा कर्म नहीं कर सकता? लोभी प्राणी पिता, माता, भाई, गुरु एवं अपने बन्धु बान्धवों को भी मार डालता है। इस सत्य के कथन में कोई अन्य विचार या तर्क को स्थान नहीं है । [१] सम्राट् कूणिक (जैन) मगध देश के अन्तर्गत राजगृह नाम का एक सुन्दर नगर था। राजा श्रेणिक वहां के शासक थे। उनके बड़े पुत्र अभयकुमार मगध साम्राज्य के महामंत्री थे । वे बड़े बुद्धिमान् और कुशल राजनीतिज्ञ थे । नावस्था में राजा श्रेणिक साधारण राजाओं की तरह राजसी ऐश्वर्य और भोगविलासों में डूबे रहते थे । वे बौद्धमतावलम्बी थे। वैशालीनरेश गणाध्यक्ष चेटक की पुत्री सुज्येष्ठा के रूपप-सौन्दर्य की चर्चा सुनकर श्रेणिक मुग्ध हो उठे । उन्होंने चेटक से उनकी पुत्री की याचना की | चेटक श्रमणोपासक थे । वे अपनी पुत्रियों का विवाह भी जैन परिवार में करना चाहते थे । श्रेणिक बौद्धमतावलम्बी थे । चेटक ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया । श्रेणिक उदास रहने लगे। पिता की उदासी का कारण जानकर उनके पुत्र अभयकुमार ने अपने बुद्धिबल से वैशाली पहुंचकर सुज्येष्ठा के हृदय में श्रेणिक के लिए अनुराग उत्पन्न कर दिया । सुज्येष्ठा श्रेणिक के साथ भागने को तैयार हो गई। सुज्येष्ठा ने अपनी छोटी बहन चेलना को भी अपने साथ चलने के लिए तैयार कर लिया । अभयकुमार ने वैशाली के महल तक सुरंग खुदवा दी। राजा श्रेणिक सुरंग मार्ग से वैशाली के महल में पहुंचे । पूर्वनिश्चित समयानुसार सुज्येष्ठा और चेलना पहले ही तैयार थीं। लेकिन भवितव्यतावश सुज्येष्ठा अपनी रत्नपेटिका भूल गई। वह महल में रत्नपेटिका लेने चली गई । तब तक महलरक्षक सजग हो गए। श्रेणिक चेलना को साथ लेकर भाग निकले। सुज्येष्ठा छूट गई । चेलना राजगृह पहुंच गई। द्वितीय खण्ड: 335
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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