SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जौहर की गति जौहरी जाणै, की जिण जौहर होय। दरद की मारी वन-वन डोलूं, बैद मिल्या नहीं कोय॥ मीरा की प्रभु पीर मिटे जब, बैद सांवरिया होय। मीरा के महलों में नित्यप्रति साधु-संत आते। सत्संग होता। मीरा भी साधु-संतों के पास सत्संग करने जाती। मीरा को गली-गली डोलते देख राजा इसे अपना अपमान समझता। उसने मीरा पर पहरे बैठा दिए। एक रात्री राजा को शिकायत मिली की मीरा के महलों में कोई पुरुष है। राजा नंगी तलवार लेकर क्रोध से पागल बना मीरा के महल में पहुंचा। उसने कक्ष के द्वार से कान लगाकर सुना । मीरा किसी पुरुष से प्रेमालाप कर रही थी। उसने क्रोधित होकर कटु स्वर में द्वार खुलवाया।देखा तो वहां मीरा के अतिरिक्त कोई न था। लज्जित-सा राजा लौट गया। अपनी भक्ति में राजा को कदम-कदम पर बाधा अनुभव करते हुए मीरा ने महलों का सदा सर्वदा के लिए परित्याग कर दिया। वह वृन्दावन चली गई। वृन्दावन के कुञ्ज-कुञ्ज में श्रीकृष्ण को खोजती गाती हुई विचरने लगी मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई। जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई॥ मीरा का एक-एक पद भक्ति रस में पगा है। आज भी उन पदों को गाते हुए गायक और सुनते हुए श्रोता भक्ति-सागर में आकण्ठ निमग्न हो जाते हैं। मीरा ने अपने लक्ष्य को साधने के लिए कभी कष्टों की परवाह नहीं की। भगवद्-भक्ति में डूब कर मीरा अमर हो गयी। OOO सोमा और मीरा के चरित्रों में नारी के उस रूप के दर्शन होते हैं जो प्रभु और अपने धर्म के लिए शेष सब कुछ को त्यागने के लिए तत्पर हो जाती है। कृष्ण-भक्ति में समर्पित मीरा और जैन धर्म को अपना प्राण धन मानने वाली सोमा को विवश किया गया है कि वे प्रभु और अपने धर्म को विस्मृत कर दें। उनकी अस्वीकृति पर उन्हें अनेक कष्ट दिए गए। राजा ने मीरा के लिए विष का प्याला भेजा। मीरा ने सत्य जानते हुए जैन धर्म एवं दिक धर्म की सांस्कृतिक एकता 322
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy