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________________ जाने लगे। उसे विवश किया गया कि वह नवकार मंत्र और अरिहंत भगवान् को भूल जाए। सोमा ने प्रत्येक कष्ट को मुस्कान के साथ स्वीकार किया। वह अपने ध्येय पर अडिग रही। बुद्धप्रिय और उसके माता-पिता ने एक कुटिल चाल चली। उन्होंने सोमा की हत्या करने का निर्णय कर लिया। बुद्धप्रिय ने एक सपेरे से एक विषधर सर्प खरीद लिया। सर्प को एक घड़े में रख कर वह सोमा के पास लाया और कृत्रिम प्रेम प्रदर्शित करते हुए बोला- "देखो प्रिये! मैं तुम्हारे लिए सुन्दर फूलों का हार लेकर आया हूं। इसे ग्रहण करो। तुम्हारे गले में यह अत्यन्त सुन्दर लगेगा।" सोमा के हृदय-मंदिर में प्रतिक्षण अरिहंत देव का निवास था। वह प्रत्येक कार्य को करते हुए महामंत्र नवकार का जाप करती थी। सोमा ने नवकार मंत्र पढ़ते हुए घड़े में हाथ डाला। उसके हाथ में कोमल-सुन्दर फूलों का हार था। सास-ससुर और पति सर्प को फूलमाला के रूप में देखकर दंग रह गए। उनके हृदय धड़कने लगे। पति-आज्ञा का पालन करते हुए सोमा ने उस माला को अपने गले में धारण कर लिया। सास-ससुर और पति सोमा का सामना न कर सके। इस. अपूर्व अद्भुत चमत्कार को देखकर उनके हृदय परिवर्तित हो गए। उन्होंने सोमा को वास्तविकता बताते हुए अपनी धृष्टता के लिए क्षमा मांगी। सोमा ने अपनी सास-ससुर और पति को जिन धर्म का मर्म समझाया। महामंत्र नवकार और अरिहंत देव की महिमा बताई।पूरे परिवार ने जिन धर्म को ग्रहण किया। सोमा का जीवन सुखपूर्वक धर्माराधन करते हुए अतीत होने लगा। पूरा घर स्वर्ग बन गया। [२] मीरा बाई (वैदिक) मीरा बाई श्रीकृष्ण की दीवानी थी। उसने अपना सर्वस्व अपने प्रभु गिरिधरनागर के चरणों में अर्पित कर दिया था। सुख-दुःख तथा लोकलाज से अतीत उस प्रेम दीवानी ने श्रीकृष्ण को अपना पति घोषित कर दिया था। तिीय खण्ड 319
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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