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________________ धनगुप्त दृढ़धर्मी श्रावक थे। उन्होंने निश्चय किया था कि वे अपनी पुत्री सोमा का विवाह जैन कुल में ही करेंगे। सोमा के रूप गुण की ख्याति की सुगंध से आकर्षित अनेक श्रीसम्पन्न श्रेष्ठियों के वैवाहिक प्रस्ताव धनगुप्त को प्राप्त होते थे, लेकिन धार्मिक समानता न पाकर वे इन्हें अस्वीकार कर देते थे। उसी नगर में बुद्धप्रिय नाम का एक सुन्दर और श्रीसम्पन्न श्रेष्ठीपुत्र रहता था। उसने सोमा के रूप-गुण की प्रशंसा सुनी। वह मन ही मन सोमा का दीवाना बन बैठा। उसने सोमा से विवाह रचाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। लेकिन उसे ज्ञात हो गया कि धनगुप्त अपनी पुत्री का विवाह श्रमणोपासक युवक से ही करेंगे। बुद्धप्रिय बौद्ध था। उसका पूरा परिवार भी कट्टर बौद्ध मतानुयायी था। बुद्धप्रिय ने सोमा को अपनाने के लिए एक चाल चली। वह कपटी श्रावक बन गया। सन्तों की सभा में वह सबसे आगे बैठकर सामायिक करता तथा जैन समाज के सांस्कृतिक-धार्मिक कार्यक्रमों में अत्यधिक रूचि प्रदर्शित करता । वह धनगुप्त का ध्यान आकर्षित करना चाहता था और ऐसा करने में वह अन्ततः सफल भी हो गया। धनगुप्त ने बुद्धप्रिय को अपनी पुत्री सोमा के लिए उपयुक्त वर समझा। बुद्धप्रिय अतिप्रसन्न था। उचित समय पर धनगुप्त ने अपनी पुत्री सोमा का विवाह बड़े महोत्सवपूर्ण क्षणों में बुद्धप्रिय के साथ सम्पन्न कर दिया। ससुराल की देहरी पर पांव धरते ही सोमा सत्य से परिचित हो गई कि इस घर में जिनत्व के पुजारी नहीं, द्वेषी निवास करते हैं। बुद्धप्रिय की कपटलीला उसकी समझ में आई। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। भारतीय नारी जीवन में एक ही पुरुष को पति रूप में देखती है और सोमा भी बुद्धप्रिय को पतिरूप में देख चुकी थी। उसने अपने मन को समझाते हुए विचार किया- मैं अपने पति को एक दिन अवश्य श्रमणोपासक बना दूंगी। सोमा प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सामायिक करती तो उसकी सास और ननद जल भुन उठती। उसके ससुर के लिए भी यह असह्य था। बुद्धप्रिय कुछ दिन तो मन मारकर सोमा की सामायिक को सहन करता रहा, लेकिन अधिक समय उससे सहन नहीं हुआ। सास-ससुर-ननद और पति पूरा परिवार सोमा से द्वेष करने लगा। उसे नाना प्रकार के कष्ट दिए जैन धर्म एवं निधन की सरकाशक वजा 3182
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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