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[२] बिल्वमंगल
(वैदिक)
रामदास नामक एक भक्त ब्राह्मण था। उसके एक पुत्र था, जिसका नाम बिल्वमंगल था। कालान्तर में रामदास का देहान्त हो गया। पिता की अपार सम्पत्ति का स्वामित्व बिल्वमंगल को प्राप्त हुआ। कुछ व्यसनी युवक बिल्वमंगल के मित्र बन गए। संगदोष ने बिल्वमंगल के जीवन में अनेक बुराइयों को उत्पन्न कर दिया।
एक दिन गांव में चिन्तामणि नामक एक वेश्या का नाच था। अपने मित्रों के साथ बिल्वमंगल भी वेश्या का नृत्य देखने गया। उसका चित्त वेश्या में अनुरक्त हो गया।
चिन्तामणि गांव से दूर बरसाती नदी के पार बने अपने सुन्दर भवन में रहती थी। बिल्वमंगल प्रतिदिन उसके पास जाने लगा। बिल्वमंगल रात-दिन चिन्तामणि की चिन्ता में अनुरक्त रहने लगा।
एक दिन बिल्वमंगल के पिता का श्राद्ध था। बिल्वमंगल का मन श्राद्ध-कर्म के स्थान पर चिन्तामणि में खोया था। सगे-सम्बन्धियों के समझाने पर उसने ज्यों-त्यों पिता का श्राद्ध-कर्म निपटाया। तब तक रात्री घिर आई थी। आकाश में बादल घिर रहे थे। बिजलियां चमक रही थीं। कुछ ही देर बाद मूसलाधार बरसात होने लगी। लेकिन बिल्वमंगल का मन चिन्तामणि के पास जाने को आतुर था। भयावह मौसम की परवाह किए बिना वह वेश्या से मिलने चल दिया। नदी के तट पर पहुंचा । नदी किनारे तोड़कर बह रही थी। जीवन की चिन्ता किए बिना उसने नदी में छलांग लगा दी। बहते हुए एक मुर्दे को उसने काष्ठ-खण्ड समझा और उस पर सवार होकर नदी पार की। डगमगाता-डोलता हुआ, वह वेश्या के भवन के पास पहुंचा। उसने चिन्तामणि को पुकारा । आंधी और बरसात के कारण उसकी पुकार वेश्या तक नहीं पहुंची। बिल्वमंगल बहुत देर तक पुकारता रहा। जब कोई प्रत्युत्तर न मिला तो उसने इधर-उधर देखा । उसने देखा भवन की दीवार से एक रस्सी लटक रही है। उसके सहारे वह भवन पर चढ़ गया। वेश्या उसे ऐसे
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जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता/312
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