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________________ महर्षि व्यास ने अपने पुत्र से गर्भ से बाहर आने की अनेक बार प्रार्थना की। लेकिन शुकदेव बाहर नहीं आए। पुराणों के अनुसार अन्ततः स्वयं श्री कृष्ण ने प्रगट होकर शुकदेव जी को जन्म के पश्चात् माया से विमुक्त रहने का वरदान दिया। भगवान् का वरदान पाकर शुकदेव जी संतुष्ट हो गए। वे गर्भ से बाहर आ गए। जन्म लेते ही शुकदेव युवा हो गए। वे एक पल के लिए भी वहां रूके नहीं। वे वन में तपस्या करने के लिए चले गए। महर्षि व्यास ने उन्हें लौटाने का बहुत प्रयत्न किया। लेकिन जिसके हृदय में ज्ञान की लौ जग जाती है और भगवन्नाम की प्यास जग जाती है, फिर उसे कोई नहीं लौटा सकता। शुकदेव जंगलों में एकाकी विचरण करते हुए भगवद-भजन में लीन रहने लगे। व्यास जी का पितृहृदय पुत्रदर्शन के लिए व्याकुल रहता था। वे जानते थे कि उनका पुत्र परम भगवद्भक्त है। मोह के स्वर उसे आकर्षित नहीं कर सकते। भगवन्नाम ही उसके लिए आकर्षण का केन्द्र है। उसी के द्वारा उसे खोजा जा सकता है। व्यास जी ने अपने शिष्यों को एक श्लोक, जिसमें भगवान् के स्वरूप का मनोहर वर्णन था, कण्ठस्थ कराया और उन्हें निर्देश दिया कि वे जंगल में घूमते हुए इस श्लोक का उच्च स्वर से गान किया करें। व्यास जी के शिष्य उक्त थोक का गान करते हुए जंगल में घूमने लगे। एक दिन शुकदेव के कान में उस श्लोक के स्वर पड़े। वे उस थोक पर मुग्ध हो उठे और व्यास जी के शिष्यों के पास आ गए। शिष्य शुकदेव को व्यास जी के पास ले गए। व्यास जी ने शुकदेव को श्रीमद् भागवत का अध्ययन कराया। गुरु के बिना ज्ञान अधूरा रहता है। इसी बात को लक्ष्य में रखते हुए शुकदेव पिता की आज्ञा लेकर जनक को गुरु बनाने चल दिए। वे मिथिला नगरी पहुंचे। राजदरबार के द्वार पर एक पहरेदार ने उन्हें रोक दिया और उनका अपमान किया। अपमान से शुकदेव खेद-खिन्न नहीं हुए और वहीं शान्तभाव से तल्लीन बने खड़े रहे। कुछ देर बाद दूसरे द्वारपाल ने आकर शुकदेव की प्रशस्तियां की और अतीव श्रद्धाभाव से उन्हें महल में ले गए। एक सज्जित-सुविधापूर्ण कक्ष में उन्हें ठहरा दिया गया। मान के क्षण में भी शान्तचित्त शुकदेव आत्मचिन्तन में रत रहे। द्वितीय खण्ड/279
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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