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________________ [२] शुकदेव मुनि (वैदिक) शुकदेव जन्मतः ज्ञानी थे । वे महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे । उनके बारे में अनुश्रुति है कि अपने पूर्व भव में वे शुक थे। एक बार वे उड़ते हुए शिवलोक में पहुंच गए। वहां भगवान् शंकर माता पार्वती को भगवान् की लीलाओं का वर्णन सुना रहे थे । कथा सुनते-सुनते माता पार्वती इतनी तन्मय हो गईं कि वे आत्मविस्मृत हो गई। कथा में बाधा न पड़े- इसलिए वे (शुक) हुंकृति देने लगे । कथा की समाप्ति पर शंकर जी को यह ज्ञात हुआ तो वे रुष्ट | अतः शुक को पुनर्जन्म लेना पड़ा । शुक ने महर्षि व्यास की पत्नी के उदर से जन्म धारण किया । शुकदेव बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहे। अपनी योगशक्ति से वे इतने लघुकाय बने रहे कि उनकी माता को कोई कष्ट नहीं हुआ ।' गर्भस्थ शुकदेव जी का विचार था कि जब तक जीव गर्भ में रहता है, तब तक उसका ज्ञान प्रकाशित रहता है। गर्भ से बाहर आते ही माया उसे मोहित कर देती है । उसका ज्ञान विस्मृत हो जाता है और वह सांसारिक विषयों में आसक्त होकर अनन्त संसार-सागर में डूब जाता है। 1. भगवान् महावीर के सम्बन्ध में भी ऐसी ही घटना है। भगवान् गर्भावस्था में ही विशिष्ट ज्ञानी थे। अर्थात् उन्हें मति, श्रुत और अवधिज्ञान था। जब गर्भ का सातवां महिना बीता चुका, तब एक दिन भगवान् ने सोचा- मेरे हलन चलन से माता को कष्ट होता है । अत: उन्होंने गर्भ में हिलना-डुलना कतई बन्द कर दिया। अचानक गर्भ का हिलना-डुलना बन्द होने से माता त्रिशला अमङ्गल की कल्पना से शोकसागर में डूब गई। उन्हें लगा कि कहीं गर्भ में बालक की मृत्यु तो नहीं हो गई? धीरे-धीरे वह खबर सारे राज-कुटुम्ब में फैल गई। सभी यह बात सुनसुन कर दुःखी होने लगे । भगवान् ने यह सब अपने ज्ञान से देखा और सोचा- 'माता-पिता की सन्तानविषयक ममता बड़ी प्रबल होती है। मैंने तो मां के सुख के लिए ही हलन चलन बन्द कर दिया था परन्तु उसका परिणाम विपरीत ही हुआ।' माता-पिता के इस स्नेहभाव को देखकर भगवान् ने अंग-संचालन किया और साथ में यह प्रतिज्ञा की कि- 'जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे, तब तक मैं प्रव्रज्या नहीं करूंगा।' ( - सम्पादक) जन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता / 278
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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