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________________ उन्हीं दिनों पांचवें गणधर आर्य सुधर्मा स्वामी राजगृह नगर में पधारे। जम्बूकुमार उनका उपदेश सुनने गए। जिनवाणी का अचूक प्रभाव जम्बूकुमार पर हुआ। उन्हें संसार खारा और संयम प्यारा लगने लगा। उन्होंने मन ही मन संयम लेने का दृढ़ संकल्प ले लिया। जम्बूकुमार घर लौटे। उन्होंने माता-पिता को अपने हृदय की बात कही। माता-पिता को सहसा कानों पर विश्वास न हुआ। उन्होंने पुत्र को समझाया। संयम की दुरूहता का दर्शन सुनाया। जिन्हें संयम की लगन लग जाती है, छूटती नहीं है। माता-पिता जम्बूकुमार के तर्कों के समक्ष पराजित हो गए। . ऋषभदत्त ने आठों सम्बन्धित-सेठों के बुलाकर उन्हें अपने पुत्र के मुनि-दीक्षा के भाव बताए। सेठों ने भी जम्बूकुमार को समझानेमनाने का बहुत प्रयास किया। परन्तु सब विफल रहा। आठों कन्याओं को भी घटना ज्ञात हुई। उन्होंने परस्पर निर्णय करके कहा हमने जम्बूकुमार को अपना पति माना है। एक बार हमारा उनसे विवाह हो जाए तो हम उनके विरक्त हृदय में राग का संसार भर देंगी। यदि ऐसा न कर सकी तो उन्हीं का अनुगमन करके संयम धारण कर लेंगी। जम्बूकुमार पर सभी ओर से दबाव पड़े तो उन्होंने एक दिन के लिए विवाह की स्वीकृति दे दी। उन्होंने कहा- दूसरे दिन मैं संयम धारण कर लूंगा। आठ कोटीश्वर सेठों की कन्याओं के साथ जम्बूकुमार का विवाह सम्पन्न हो गया। दहेज में विपुल द्रव्य आया। सुहागरात की वेला में आठों अनिंद्य सुन्दरी पत्नियों ने जम्बूकुमार को घेर लिया। उनके वैराग्य का रंग उतारने के लिए आठों ने अपने प्रयास शुरू कर दिये । व्यंग्यों द्वारा, मधुर मनुहारों द्वारा और विभिन्न मुद्राओं द्वारा वे जम्बूकुमार के हृदय में स्वयं के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने लगीं। उस युग का एक नामी चोर था-प्रभव । वह पांच सौ चोरों का सरदार था। उसे दो विद्याएं आती थीं-अवस्वापिनी तथा तालोदघाटिनी। पहली विद्या से जहां सभी को निद्राधीन किया जा सकता था, वहीं दूसरी विद्या से ताले खोले जा सकते थे। प्रभव को सूचना मिली कि ऋषभदत्त के 'जोन धर्म पदिक धर्ग की सास्कृतिक एकता /2762
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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