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________________ अपने दान की प्रशंसा सुनने में दत्तचित्त वाजश्रवा बार-बार के इस अप्रिय हस्तक्षेप से खीझ उठे । झल्लाकर उन्होंने कहा, 'जा! मैंने तुझे मृत्यु को दिया !" यह सुनकर नचिकेता भयभीत नहीं हुआ । बालसुलभ उत्साह के साथ उसने यम के पास जाने के लिए स्वयं को प्रस्तुत कर दिया । एक ओर उसके मन में यह संतोष था कि उसने अपने पिता की पृथ्वी का सबसे बड़ा दानवीर बनने में सहायता की तथा दूसरी ओर यह उल्लास था कि उसे मृत्यु के देवता यम के दर्शन करने का अवसर भी सहजता से मिल गया। मृत्यु से संबंधित प्रश्नों का उत्तर मृत्यु के देवता से अधिक अधिकार के साथ और कौन दे सकता है? नचिकेता ने सोचा और दोगुने उत्साह से उसका मन भर गया । नचिकेता यमलोक पहुंचा। पता लगा कि यमराज कहीं बाहर हुए हैं। वह वहीं उनके लौटने की प्रतीक्षा करने लगा। तीन दिन बीत । वह धैर्य से उनकी प्रतीक्षा करता रहा। तीन दिन के बाद यमराज लौटे। देखा कि एक ब्राह्मण-पुत्र उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। तीन दिन से इसने कुछ खाया-पीया भी नहीं है । यमराज का मन बालक के प्रति करुणा से भर उठा। उन्होंने नचिकेता से तीन दिन तक कष्ट सहने के बदले तीन वर मांगने के लिए कहा । 'पहला वर मैं यह मांगता हूं कि मैं जब यहां से वापिस जाऊं तो मेरे पिता मुझ पर क्रोध न करें। वे मुझ पर वात्सल्य की वर्षा उसी प्रकार करें, जिस प्रकार पहले किया करते थे । ' 'तथास्तु!' यमराज ने प्रसन्न होकर कहा । नचिकेता ने दूसरे वर के रूप में अग्नि का स्वरूप जानने की तीव्र इच्छा प्रकट की । यमराज ने उसे यह वर भी प्रदान किया । अनि का स्वरूप एवं रहस्य स्वयं उसे समझाया। तीसरा वर मांगते हुए नचिकेता ने कहा, 'कृपा कर मुझे जन्म, मृत्यु और ब्रह्म का रहस्य भी समझाइए ! यही मेरा तीसरा वर है ।' यह सुनकर यमराज चकित रह गए। एक बालक तीन दिन से भूखा-प्यासा है । अपने घर से दूर है । फिर भी खाने-पीने के लिए कुछ जैन धर्म एव वैदिक धर्म की सास्कृतिक एकता / 270
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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