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________________ [४] नचिकेता (वैदिक) वाजश्रवा नाम के ब्राह्मण थे। उनके (वैदिक) पिता का नाम आरूणी था । नाना वस्तुओं, धन-धान्य आदि का दान करना उनका स्वभाव था। अपने समय के वे प्रसिद्ध दानवीर थे। समय-समय पर यज्ञ किया करते और प्रभूत दान दिया करते। उनका एक पुत्र था- नचिकेता । वह बड़ा होनहार बालक था ।यों तो बचपन की विशेषता ही होती है-जिज्ञासा, परंतु नचिकेता के स्वभाव में जिज्ञासा विशेष रूप से थी। वह ऐसे-ऐसे प्रश्न किया करता, जिनकी आशा किसी साधारण बालक से नहीं की जा सकती थी। पिता वाजश्रवा अपनी दानवीरता के लिए विख्यात थे तो पुत्र नचिकेता अपनी गहन जिज्ञासा के लिए। एक बार वाजश्रवा ने एक विशाल यज्ञ किया। यज्ञ में भाग लेने के लिए दूर-दूर से ऋषियों को आमंत्रित किया गया। यज्ञ संम्पन्न होने पर वाजवा ने अपनी उदारता का परिचय देते हुए अपना समस्त धन दान में दे डाला। उनके पास जितनी गाएं थीं, वे भी सब उन्होंने दान कर दीं। चारों ओर उनके दान की प्रशंसा होने लगी। संयोग से उसी समय वहां नचिकेता भी उपस्थित था। एक ब्राह्मण ने जब वाजश्रवा को पृथ्वी का सबसे बड़ा दानी कहा तो नचिकेता से रहा नहीं गया। उसने अपने पिता से पूछा, "पिताश्री! दान तो अपनी सबसे प्रिय वस्तुओं का दिया जाता है। मैं आपको सबसे प्रिय हूं। मुझे दान किए बिना आप पृथ्वी के सबसे बड़े दानी नहीं हो सकते। मुझे आप किसको दान देंगे?' वाजश्रवा ने नचिकेता की बात पर ध्यान नहीं दिया। उसके प्रश्न का उत्तर देने की आवश्यकता भी उन्होंने अनुभव नहीं की। सोचाबच्चा है! किस समय क्या पूछना और कहना चाहिए, इसका ज्ञान इसे नहीं हैं। नचिकेता ने पिता को अपने प्रश्न की उपेक्षा करते देखा तो अपने उसी प्रश्न को फिर से दोहराया। इस बार भी वाजश्रवा ने ध्यान नहीं दिया। नचिकेता बार-बार उसी प्रश्र को पूछने लगा। स्पष्ट था कि वह अपना उत्तर पाए बिना चुप नहीं होने वाला। दिशीरा सा 269
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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