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थाव, सेठानी बोली- “बेटे! आत्मा का देह धारण करना जन्म है और इस शरीर को छोड़कर चले जाना मृत्यु है।"
"मां! क्या सभी को एक दिन अवश्य मरना है?" "हां, बेटे! मृत्यु सुनिश्चित है। एक दिन सभी को मरना है।" "क्या मैं भी मरूंगा?"
पुत्र के प्रश्न ने मातृहृदय को हिला डाला | थावर्चा सेठानी ने पुत्र के मुख पर हाथ धरते हुए कहा – “तुम क्यों मरो! मरें तुम्हारे शत्रु!"
"तो मैं अमर हूं, मां! मैं कभी नहीं मरूंगा?"
पुत्र ने मां को उलझा लिया। तत्त्वज्ञा सेठानी पुत्र को असत्य शिक्षा न दे पाई। उसने स्पष्ट शब्दों में कह दिया -"हां, बेटे! एक दिन तुम्हें भी मरना होगा।"
थाव_पुत्र का बाल आनन गंभीरता के सागर में डूब गया। उसने कहा - "मां! मुझे मृत्यु अप्रिय है। क्या कोई भी ऐसा नहीं है, जो मृत्यु से मेरी रक्षा कर सके?"
“है बेटे!” “थावा बोली – “भगवान् अरिष्टनेमी हैं जो अमरता का मूलमंत्र जानते हैं। जो उनकी शरण में पहुंच जाता है, वह मृत्यु को सदा-सदा के लिए मार देता है।"
"तो मैं उन्हीं की शरण में जाऊंगा।" थाव पुत्र बोला-"मैं भी मृत्यु को मारकर अमृत का पान करूंगा।"
भगवान् अरिष्टनेमि द्वारिका नगरी में पधारे । थावापुत्र दीक्षा लेने को तत्पर हुआ। स्वयं श्री कृष्ण ने उसे संसार से बांधे रखने के लिए अनेक प्रलोभन दिए । परन्तु अमरता का खोजी-थाव पुत्र किसी भी लोभ के समक्ष नहीं झुका । उसने श्रीकृष्ण के तीन खण्ड के राज्य को ठुकरा दिया।
थावापुत्र में अमृत की खोज की इस उत्कण्ठा से अनेक लोग प्रभावित हुए। एक हजार पुरुषों ने थावर्चापुत्र के साथ संयम ग्रहण किया। महान् तप करके उसने मृत्यु को मार डाला। वह अनन्त-अनन्त के लिए अमर हो गया।
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कि धर्म की सांस्कृतिक एकता 2680