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________________ - अर्थात् लघु वय में ही जो विरक्त हो, वही वास्तव में विरक्त है - ऐसा मेरा विचार है। (वृद्धावस्था में जब) धातु क्षीण हो चुकने पर तो किसे विरक्ति नहीं होती? ज्ञान का सहज परिणाम त्याग है । ज्ञानभाव में त्याग प्रदर्शन के अतिरिक्त कुछ नहीं है। त्याग किया नहीं जाता है, वह तो घटित होता है । निष्कामता - विरक्ति, ज्ञान के सहज परिणाम में हैं । अज्ञानी को ही काम-क्रोध- मोह पीड़ित करते हैं । ज्ञानी को नहीं । अज्ञानी वह है जो परत्व में स्वत्व का दर्शन करता है । भगवान् महावीर का सम्पूर्ण त्याग ज्ञानधार पर अवलम्बित है। ज्ञान को प्रमुखता प्रदान करते हुए भगवान् महावीर ने कहा " णाणं तइयं चक्खू ।" ज्ञान तृतीय नेत्र है। तृतीय नेत्र खुलते ही काम, क्रोध, ममत्व स्वतः नष्ट हो जाते हैं । वैदिक मान्यतानुसार शिव के तृतीय नेत्र उद्घाटित होते ही उपद्रवी कामदेव भस्म हो गया था। पढिये! बाल कथानकों को जिनमें बाल्यावस्था में ज्ञान के प्रकट होने और वैराग्य पथ पर बढ़ने का अद्भुत चित्रण है। [१] बालमुनि अतिमुक्त (जैन) मगध देश के अन्तर्गत पोलासपुर नाम का एक नगर था । वहां पर विजय राजा का राज्य था । उनकी रानी का नाम श्रीदेवी था । उनके एक पुत्र था, जिसका नाम अतिमुक्त कुमार था । अतिमुक्त कुमार मातापिता और प्रजा को अतिप्रिय था । वह बहुत मेधावी था । एक दिन अपने बालसखाओं के संग अतिमुक्त कुमार राजसी बालोद्यान में खेल रहा था। बालकों के लिए खेल अतिप्रिय होता है। खेल में वे भूख-प्यास और माता-पिता तक को भूल जाते हैं । भगवान् महावीर पोलासपुर के बाह्य भाग में विराजित थे। भगवान् के प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम भिक्षा के लिए पोलासपुर में द्वितीय खण्ड 261
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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