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भाइयों को जलाकर भस्म कर दिया। सेना भयभीत हो गई। सेनापति को चक्रवर्ती-पुत्रों की मृत्यु का दुःख तो था ही, साथ ही उसे यह चिन्ता थी कि चक्रवर्ती को यह दुःखद समाचार कैसे दिया जाए। सेनापति ने बहुत विचार कर यह कार्य एक वृद्ध विद्वान् ब्राह्मण को सोंप दिया।
___ ब्राह्मण अयोध्या पहुंचा। जिधर सगर भ्रमण को निकले थे, उधर खड़ा होकर आर्त स्वर में रोने लगा। सगर ने ब्राह्मण से रोने का कारण पूछा। ब्राह्मण बोले
“महाराज! मेरा युवा पुत्र मर गया है। मैं उसे भुला नहीं पा रहा हूं। वह बड़ा होनहार था। लाखों में एक था।"
सगर बोले-"ब्राह्मण देव! जीवन के साथ मृत्यु का अटूट सम्बन्ध है। जो जन्म लेता है उसे एक दिन अवश्य मरना होता है। धैर्य ही दवा है। संतोष रखिए।"
___“क्या ऐसी स्थिति में धैर्य रखा जा सकता है।" ब्राह्मण ने
पूछा।
"क्यों नहीं! वीर पुरुष कैसी भी स्थिति में धैर्य नहीं छोड़ते।' सगर ने उत्तर दिया।
ब्राह्मण बोले- “महाराज! आप शूरवीर हैं। और यह आपके धैर्य का क्षण होना चाहिए। आपके सभी पुत्र मर चुके हैं।' कहते हुए ब्राह्मण ने पूरी बात सगर को कह दी।
सगर को अकल्पित दुःख हुआ। लेकिन वे शीघ्र ही संभल गए। विरह के दुःख से वैराग्य जन्मा। राज-पाट छोड़कर वे मुनि बन गए। घोर तप करके, कैवल्य साधकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए।
मोह संसार है। अमोह मोक्ष है। मोह दुःख है, कष्ट है, बन्धन है। अमोह आनन्द है, विमुक्ति है। मोह के आधार प्राणी या द्रव्य संयोग अवस्था में सुखाभास तो देते हैं, पर वास्तविक सुख नहीं। वियोग काल में मोहासक्त अतिदुःखित होता है।
मोह-खण्डन के क्षण को जो ज्ञान भाव से स्वीकृत करता है वह मोहातीत होकर परमपद को पा लेता है। [त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित से]
जन गं
दिक धर्म की सांस्कृतिक एकता 254