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भोजन से विरत हो जाय । कामभोग के दलदल में फंसे चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त को पूर्वजन्म के भाई मुनि का बारबार समझाना भी निरर्थक सिद्ध हुआ। अन्त में कामभोगों ने उसे दुर्गति की ओर ही धकेल दिया।
महाभारत के पात्र दुर्योधन ने भी असत्य और छल का सहारा लेकर सत्ता को पाने के लिए समस्त अधर्ममय प्रयास किये। वह काम-भोग की आसक्ति से ग्रस्त प्राणी था। उसने आजीवन तनाव व संघर्ष का अशान्त जीवन जीया और अन्ततः कुलसहित विनष्ट होकर दुर्गति रूप रसातल में गया।
ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती और दुर्योधन- ये दोनों ही चरित्र भोगों की चाह में डूबे हुए थे और अपनी कामना की पूर्ति के लिए कुछ भी अधर्म या पाप करने के लिए तत्पर थे। प्रतिबोध देने पर भी उनकी आत्मा प्रमाद से विरत नहीं हो पाई। दोनों ने प्रतिबोध सुना, किन्तु उनके हृदय में वह उतर नहीं पाया, और वह आचरण में नहीं आ सका। ज्ञान व क्रिया का समन्वय होने पर ही परमकल्याण का मार्ग प्रशस्त हो पाता है- इस सत्य से दोनों परम्पराएं सहमत हैं।
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