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________________ उस तक पहुंच नहीं पाता । मैं भी कामभोगों मे फंसा हूं। मैं इनको छोड़ नहीं सकता। ये मुझे प्रिय लगते हैं। रूचते हैं। मैं इनके लिए कामनाशील हूं। चित्त मुनि बोले- राजन् अगर तू काम भोगों का परित्याग नहीं भी कर सकता तो कम से कम संसार में रहते हुए आर्य कर्म (श्रेष्ठ कर्म) तो किया कर, इससे तुझे सद्गति प्राप्त होगी। उपदेश देकर मुनि चले गये। पांचाल राजा ब्रह्मदत्त मुनि के उपदेश को साकार नहीं कर सका। ब्रह्मदत्त ने सात सौ वर्ष की आयु तक राज्य किया। जब उसकी आयु अठारह वर्ष शेष थी तब एक ब्राह्मण ने धोखे से छिपकर गुलेल के वार से उसकी दोनों आंखे फोड़ दीं। इससे ब्रह्मदत्त ब्राह्मण वर्ग का शत्रु बन गया। उसने आदेश दिया कि पृथ्वी के समस्त ब्राह्मणों की आंखें निकाल कर उसके समक्ष रखी जाएं। मंत्री धर्मात्मा और चतुर था। उसने मनुष्य की आंख के आकार के श्लेष्मांतक फलों का थाल राजा के समक्ष रख दिया। उन फलों को ब्राह्मणों की आंख मानकर ब्रह्मदत्त उन पर हाथ फिराने लगा और प्रसन्न होने लगा। ऐसे अठारह वर्षों तक महारौद्र ध्यान को जीते हुए, मरने पर ब्रह्मदत्त सातवें नरक में गया । इस तरह भोगों में डूबे ब्रह्मदत्त ने दुर्गति को प्राप्त किया। [त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित से] [२] दुर्योधन विदिक) प्राचीन समय में हस्तिनापुर नगर में पाण्डु नाम के राजा राज्य करते थे। उनके बड़े भाई का नाम धृतराष्ट्र था। ज्येष्ठ कौरव होते हुए भी धृतराष्ट्र जन्मान्ध होने के कारण हस्तिनापुर का राज्य न पा सके थे। उत्तराधिकारी होते हुए भी राजा ज बन पाने का कष्ट-कण्टक धृतराष्ट्र के हृदय में चुभा रहता था। महाराजा पाण्डु के पांच पुत्र हुए। उनके नाम थे- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव । धृतराष्ट्र के सौ पुत्र हुए । दुर्योधन, धृतराष्ट्र का ज्येष्ठ पुत्र था। पाण्डु-पुत्र पाण्डव और धृतराष्ट्र-पुत्र कौरव कहलाए। पाण्डव धर्मज्ञ और नीतिज्ञ थे जबकि कौरव राज्य-लोलुप और अधर्मी थे। जन वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता 246)
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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