SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दोनों परम्पराओं की प्राचीनता भारतीय संस्कृति के सर्वप्राचीन उपलब्ध साहित्य वैदिक साहित्य' में वैदिक व जैन- दोनों परम्पराओं के अस्तित्व के उल्लेख प्राप्त होते हैं। वेदों में बार्हत और व्रात्य- इन दो विचारधाराओं का उल्लेख मिलता है जो क्रमशः यज्ञीय संस्कृति व आर्हत (श्रमण) संस्कृति की प्राचीनतम रूप प्रतीत होते हैं। यज्ञीय संस्कृति, बार्हत परम्परा, वैदिक धर्म, ब्राह्मण धर्म- ये सब एक ही विचारधारा या परम्परा से अनुस्यूत हैं। इसी तरह, 'व्रात्य' परम्परा, श्रमण परम्परा, जैन परम्परा भी एक ही परम्परा या विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती हैं । वैदिकपरम्परा के पुराणों में असुर संस्कृति' के रूप में भी जिस विचारधारा को प्रस्तुत किया गया है (द्र. महाभारत, 12/227 अध्याय), उसमें भी यज्ञविरोधी या निवृत्तिप्रधान आत्मसाधना की जो विचारधारा अन्तर्निहित है, वह भी श्रमण या जैन संस्कृति का बहुत अंशों में प्रतिनिधित्व करती है, यद्यपि प्रतिरोधी भावना से इसकी प्रस्तुति होने से यह अपने पूर्णतः शुद्ध रूप में अभिव्यक्त नहीं हुई है। ऋग्वेद (1/85/4) में बार्हत' परम्परा का उल्लेख है जो 'बृहती' अर्थात् 'वेदवाणी' की उपासना करने वाली थी। वैदिक या ब्राह्मण संस्कृति के पुरस्कर्त्ता ये ‘बार्हत' ही हैं- ऐसा विद्वानों का मत है । यह परम्परा प्राकृतिक शक्तियों को प्रमुख मानती थी और यज्ञ-भाग के माध्यम से इन शक्तियों की उपासना किया करती थी। बार्हत परम्परा के समानान्तर प्रचलित विरोधी विचारधारा का व्रात्य-परम्परा के रूप में वैदिक साहित्य में निरूपण प्राप्त होता है। व्रात्य परम्परा की आस्था यज्ञीय विधि-विधानों के प्रति न होकर 'व्रत' (विरति, संयम) के प्रति थी। यह कर्मवाद को मानती थी और कर्म-क्षय हेतु तप या व्रत के अनुष्ठान को प्रधानता देती थी। यह जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सास्कृतिक एकता/4
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy