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किसी सीमा तक सत्य है। परन्तु जीवन इतना ही नहीं है जितना तुम समझ रहे हो। इस जीवन से पहले भी तुम्हारा जीवन था। उस जीवन के अपराध का दण्ड तुम्हें हाथ गवां कर भोगना पड़ा है।'
"मेरा अपराध क्या था प्रभु?" सदन ने पूछा।
“पूर्व जीवन में तुम ब्राह्मण थे।" भगवान् ने कहा- “एक दिन एक गाय एक कसाई के घेरे से भागी जा रही थी। कसाई ने तुम्हें पुकार कर गाय को रोकने के लिए कहा। तुम भलीभांति जानते थे कि गाय को रोकने का परिणाम गाय की मृत्यु होगा। फिर भी तुम ने अपने दोनों हाथों को गाय के गले में डाल कर उसे रोक लिया। सदन! वही गाय इस जीवन में वह स्त्री बनी और कसाई उस का पति बना । कसाई ने गाय का वध किया था, इसलिए उस स्त्री ने अपने पति का वध करके अपना बदला लिया। तुमने भयातुर गाय को दोनों हाथों से भागने से रोका था, अतः तुम्हारें दोनों हाथ काटे गए।"
करणी का फल प्रत्येक प्राणी को अवश्य भोगना पड़ता हैइस सूत्र को सदन ने हृदयंगम कर लिया। अशुभ-पापयुक्त कर्मों से बचते हुए सदन सदैव शुभ कर्मों में लीन रहने लगा। निष्पाप जीवन बिताकर उसने परधाम प्राप्त किया।
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उपर्युक्त दो कथाएं कर्मवाद के सिद्धान्त के अनुरूप ही हैं। दोनों कथानकों का तथ्य व सत्य एकदम समान है। जैन साहित्य से उद्धत कलावती के कथानक में उसके पूर्वजन्म में किये गए हिंसात्मक कर्म (तोते के पंख काट देने) के फलस्वरूप उसके हाथ काटे जाने का वर्णन है। वैदिक साहित्य से उद्धृत सदन कसाई के कथानक में भी यही सत्य मुखरित हुआ है। सदन कसाई ने अपने पूर्व जन्म में एक भागती हुई माय को पकड़ कर कसाई को सोंपा, जिसके फलस्वरूप उसे अपने हाथ गंवाने पड़े। वैदिक व जैन- ये धाराएं भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु दोनों कथानकों की एकात्मता, एकरूपता व एकस्वरता द्रष्टव्य है।
टिकीय साड 241