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NG D भोगः दुर्गति की राह
( सांस्कृतिक पृष्ठभूमिः)
सत्ता की कामना भीतर के कामाकर्षण की प्रतीक है। 'काम' का आकर्षण अत्यन्त प्रबल होता है। उसके लिए मनुष्य अपना सर्वस्व दांव पर लगा देता है। लेकिन वह इस सत्य को विस्मृत कर देता है कि 'काम' केवल प्रवृत्ति काल में ही सुखाभास मात्र देता है, परन्तु परिणाम - काल में दारुण कष्टदाता सिद्ध होता है । भगवान् महावीर ने 'काम' के स्वरूप को प्रगट किया था
" सल्लं कामा विसं कामा कामा आसीविसोवमा ।"
(उत्तराध्ययन सू. 9/53) 'काम' शल्य हैं, विष तुल्य हैं, भयानक तालपुट विष के समान मृत्यु देने वाले । जैन आगम साहित्य में कामभोगों की निस्सारता तथा दुःखप्रद परिणति के विषय में प्रचुर सूक्तियां व उद्धरण उपलब्ध हैं, उन्में से कुछ यहां प्रस्तुत हैं:- कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं, सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स ।
(उत्तराध्ययन सू. 32/19) - समृद्धिशाली देवताओं से लेकर सामान्य प्राणियों तक जो दुःख है, वह विषय- लोलुपता के कारण प्राप्त है।
सव्वे कामा दुहावहा ।
(उत्तराध्ययन सू. 13/16)
जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता / 242)