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________________ राजा शंख को दिए। शंख की दृष्टि कंगनों पर पड़ी। कंगनों पर उटूंकित जयसेन शब्द पढ़कर शंख दंग रह गया। सत्य अनावृत हुआ। उसने कलावती की खोज में घोड़े दौड़ाए। कलावती को खोज लिया गया। शंख और कलावती का पुनर्मिलन हुआ। शंख ने कलावती से क्षमा मांगी। उनका दाम्पत्य जीवन-रथ पुनः सुख के राजमार्ग पर बढ़ चला। एक बार शंखपुर में ज्ञानी मुनि आए । राजा और रानी मुनि -दर्शन को गए। रानी ने मुनि से जिज्ञासा रखी-“गुरुदेव! निरपराधिनी होते हुए भी मेरे हाथ क्यों काटे गए? इसका कारण बताइए?" ज्ञानी मुनि ने कलावती को उसके पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुनाया"कलावती! पूर्व जन्म में तुम महेन्द्रपुर के राजा नरविक्रम की पुत्री थी। वहां पर तुम्हारा नाम सुलोचना था। किसी ने एक तोता तुम्हारे पिता को भेंट किया। वह तोता तुम्हें बहुत प्रिय था। तुम उसे संदा पिंजरे में बन्द किए अपने पास रखती थी।" ___ "एक बार तुम संत-दर्शन को गई। तोता तुम्हारे साथ था। संत-दर्शन से तोते को अपना पूर्वजन्म स्मरण हो आया । पूर्वजन्म में वह तोता संत था । पर उसने परिग्रह की ममता में फंसकर संयम की विराधना कर दी थी। उस तोते ने प्रायश्चित्त के लिए मन में यह संकल्प कर लिया कि अब वह भविष्य में संत-दर्शन करके ही भोजन-पान ग्रहण करेगा।" “प्रतिदिन वह तोता सुबह उड़ जाता।संत-दर्शन करकेलौट आता। एक बार वह कई दिनों तक नहीं लौटा। उसके विरह में तुम अधीर हो गई। तुम्हें गुस्सा भी आया। उसके लौटने पर तुमने उसके पंख उखाड़ डाले। पीड़ा से तोता कराहकर रह गया। विवश तोता मन मार कर सन्त दर्शन से वंचित हो गया।" .. ज्ञानी मुनि ने अपनी बात पूर्ण करते हुए कहा- "कलावती! पूर्व जन्म का वह तोता ही तुम्हारा पति शंख बना है। तुमने तोते के पंख उखाड़े थे, उसी के परिणाम स्वरूप तुम्हारे हाथ काटे गए।' कर्म के इस विचित्र परिणाम को सुनकर कलावती और शंख राजा प्रतिबुद्ध हो गए। ___ग्यारहवें भव में कलावती और शंख के जीव ने सर्वकर्म नष्ट कर मोक्ष का वरण किया। जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता/2381K
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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