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होकर कहा- स्वयंवर मण्डप में एक स्तंभ पर पुतली होगी। उस पर हाथ रख देना । वह राजकुमारी के प्रश्नों का उत्तर दे देगी।
राजा शंख ने वैसा ही किया। कलावती ने शंख को अपना पति चुन लिया। शंख और कलावती पति-पत्नी बन गए। शंख को मन की मुराद मिल गई। पति-पत्नी अपूर्व प्रेमपूर्वक सानन्द समय बिताने लगे।
कलावती का भाई जयसेन एक बार शंखपुर अपनी बहन के पास आया।महाराज शंख अन्यत्र गए थे।जयसेन ने अन्य अनेक वस्त्राभूषणों के अतिरिक्त अपनी बहन को दो अमूल्य स्वर्ण-कंगण दिए। भाई अपने घर लौट गया।
कलावती ने स्वर्ण-कंगण अपनी कलाइयों में धारण किए। उसे वे बहुत सुन्दर लगे। अपने दासी से कहा- "उसका मुझ पर कितना प्रेम है। उसने मुझे कितने सुन्दर और कीमती कंगन भेंट किए हैं। उसके प्रेम को मैं शब्दों में नहीं कह सकती।"
कक्ष के निकट से निकलते राजा शंख के कानों में रानी के अन्तिम शब्द पड़े। राजा संदेहशील हो उठा। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि उसकी रानी किसी अन्य पुरुष के प्रेम में पागल है। राजा की मति विभ्रमित हो गई। उसने बिना पूछताछ किए ही अपनी प्रिय रानी कलावती को जंगलों में छुड़वा दिया। इतना ही नहीं, चाण्डालों से कहकर उसके हाथ भी कटवा दिए।
___ अकस्मात टूट पड़े संकट के इस पर्वत से कलावती चूर-चूर हो गई। वह आसन्न-प्रसवा थी। वह अचेत हो गई। बहुत देर के पश्चात् जब उसकी चेतना लौटी, तो वह अपने कटे हुए हाथों को देखकर रोने लगी।
एक नदी के तट पर कलावती ने एक पुत्र को जन्म दिया। हाथ न होने से वह पुत्र को स्तनपान तक न करा सकी । नवजात शिशु के रोदन ने कलावती के मातृत्व को खून के आंसू रुला दिये। नदी की अधिष्ठात्री देवी इस शिशु और मां के रोदन को सहन न कर पाई। उसने प्रगट होकर दैवी शक्ति से कलावती के हाथ वापस दे दिए। कलावती ने शिशु को स्तनपान कराया।
उधर से कुछ तापस निकले। वे कलावती को आश्रम में ले गए। आश्रम में रहकर कलावती अपने पुत्र का पालन करने लगी।
कंगन-सहित कटे हुए कलावती के हाथ चाण्डालिनियों ने
द्वितीय खण्ड:237