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________________ धर्म क्या है? भारतीय संस्कृति का प्राण 'धर्म' है। इसीलिए इसे धर्मप्रधान संस्कृति माना जाता है। धर्म की परिभाषाएं पाश्चात्य विचारकों ने इस प्रकार की हैं . (1) अनन्त का साक्षात्कार करने के लिए, जो आन्तरिक शक्ति प्रयत्न करती है, वह धर्म है। -मैक्समूलर (2) आकाश गंगा के निर्माता तथा अच्छे शासक के प्रति और उसके जीवों के प्रति प्रेम ही मेरा धर्म है अर्थात् ईश्वर और उसके बनाये गये प्राणधारियों से प्रेम करना धर्म है। -एडम्स (3) धर्म वह चेतना है जो उन कर्त्तव्यपरायणों एवं भक्तों में आती है, जो ज्ञन द्वारा उच्चतम मूल्यों को जानकर उनके प्रति सच्चे रहते हैं और शाश्वत तत्त्व के पक्ष में रहकर उनकी सहायता करते हैं। ___ -जानवेली (4) आदर्श लक्ष्य की ओर क्रिया-इच्छा का प्रबल निर्देशनस्वामित्व ही धर्म है अर्थात् आदर्श की दिशा में उज्ज्वल प्रयत्न धर्म है। -जे. एस. मिल (5) धर्म, एक ऐसे तत्त्व का दिव्यदर्शन है, जो हमारे भीतरबाहर परे है। जो यथार्थ है किन्तु जिसकी प्राप्ति की प्रतीक्षा है, जिसकी प्राप्ति अन्तिम कल्याण है पर जो हमारी पहुंच के बाहर है जो अन्तिम आदर्श तथा निराशाजनक खोज है। -ह्वाइट हेड (6) धर्म, भाग्य पर शान्तिपूर्ण भरोसा है; दुर्जेय के प्रति शान्ति-युक्त आत्मसमर्पण है, आशंका और दुःख में रहने की प्रवृत्ति है, जीवन से उबना तथा मृत्यु के साथ मित्रता है। -इनाजोनितोबे भारतीय विचारकों के अनुसार व्यक्तित्व को, समाज को, परिवार को या राष्ट्र को धारण करनेवाला तत्त्व 'धर्म' है । वह मानवता को परिभाषित करनेवाला, पशु-जगत् से उसे पृथक् रख कर उसकी जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सारकृतिक एकता/2 Dac
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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