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मां! बहिन! किन्तु उसका समाज-गर्हित रूप है- गणिका । दोनों में कितना अन्तर है? हम इसे इस तरह भी निरूपित कर सकते हैं- एक है झरने का स्वच्छ निर्मल जल तो दूसरा है नगर की नाली का गन्दा जल । जल दोनों हैं, पर अन्तर कितना है? इसका कारण है- नगर की नाली में बहने वाले पानी का संसर्ग ऐसे पदार्थों से हो गया जिससे उसमें विकृति आ गई और वह घृणा का पात्र बन गया। अब प्रश्न है, क्या वह पानी इसी रूप में सदा गन्दा ही रहेगा? वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर उसे कुछ प्रक्रियाओं से गुजारा जाये तो वह पानी पुनः शुद्ध हो सकता है। यहां विचारणीय यह है कि वैज्ञानिकों की तरह ही, भारतीय संस्कृति के धर्मशास्त्री या धर्माचार्य इसे स्वीकारेंगे कि एक वेश्या भी धर्माचरण कर सन्नारी के रूप में आदरणीय हो सकती है? वैदिक व जैन- इन दोनों परम्पराओं में एक समान विचार प्रस्तुत किये गए हैं कि वेश्या भी सत्संगति पाकर प्रभु-कृपा का पात्र बन सकती है या धर्माराधना में अग्रसर होती हुई मुक्ति की अधिकारिणी हो सकती है।
. वैदिक परम्परा के महाभारत में पतिता नारी को भी परम पद तक प्राप्त करने का अधिकार स्वीकारा गया है:
एवं हि धर्ममास्थाय येऽपि स्युः पापयोनयः। स्त्रियो वेश्यास्तथा शुद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥
(महाभारत- 14/19/55-56) -जो कोई भी पापाचारी, चाहे वे स्त्रियां हो, वेश्या हों या शूद्र हों, धर्म का आचरण कर परम गति को प्राप्त कर सकते हैं।
अपि वर्गापकृष्टस्तु, नारी वा धर्मकांक्षिणी। तावप्येतेन मार्गेण गच्छेतां परमां गतिम् ॥
(महाभारत, 12/232/32) - चाहे कोई निकृष्ट वर्ग का हो या कोई धर्माचरण की इच्छुक नारी हो, वे दोनों धर्मोचित मार्ग से परम गति प्राप्त कर सकते हैं।
वैदिक परम्परा के अहिल्या-उद्धार का प्रसंग उक्त सत्य का समर्थन करता है। गौतम-पत्नी अहिल्या के साथ इन्द्र ने कुकर्म किया था। स्वाभाविक था कि वह पति की नजरों से गिर गई थी। समाज में भी वह इसीलिए सतीत्व-भ्रष्ट समझी गई। पति के शाप से वह पत्थर की हो
द्वितीय स्खण्ड 223