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________________ है कि मृत्यु के क्षण में मनुष्य या कोई प्राणी असत्य नहीं बोलता है। वह उस क्षण में हृदय पर लिखा हुआ बोलता है। जैन कथा साहित्य (आदि-पुराण) के जयकुमार और वैदिक साहित्य के (भागवत पुराण) ग्राह पर मृत्यु-संकट था। ऐसे क्षण में जयकुमार की अर्धांगिनी ने अपने इष्ट नवकार मंत्र का स्मरण किया तथा ग्राह ने भगवान् विष्णु को पुकारा तो उसकी पुकार तत्काल सुनी गई। नारी के प्राण उसकी लज्जा में बसते हैं। द्रौपदी ने जब अपनी लाज पर आंच देखी तो उसका रोम-रोम श्रीकृष्ण को पुकार उठा, और उसकी रक्षा हुई। जैन मान्यतानुसार द्रौपदी ने नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया। वैदिक मान्यतानुसार द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का स्मरण-चिन्तन किया। बात एक ही है। परम्परा की मान्यताभेदों को छोड़ दें तो उसने प्रभु-स्मरण किया। गज-ग्राह के कथानक में भी गजेन्द्र ने 'नमो भगवते'- इत्यादि प्रभु-नाम स्मरण-वन्दन के साथ अपनी आर्त वेदना अभिव्यक्त की थी। __ पूर्ण भक्तिभाव से जब आराध्य का स्मरण किया जाता है.तो भक्ति से दिव्य शक्ति प्रकट होती है। सभी धर्मों में इस सत्य को स्वीकारा गया है। उपर्युक्त सभी कथानकों द्वारा वैदिक व जैन- इन दोनों परम्पराओं में स्वीकृत 'प्रभुनामस्मरण की अद्भुत शक्ति' का निदर्शन हुआ है। इन सभी कथानकों में अन्तर्निहित सत्य-तथ्य-कथ्य एक ही है। जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता/2201→
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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